बीजेपी नेता रवि तिवारी (Ravi Tiwary) ने सनातन धर्म की महानता के बारे में बताया

सबसे पहले मैं यह कहना चाहता हूँ कि नवरात्रि के पावन पर्व पर मुझे (रवि तिवारी) पश्चिम विहार नवरात्रि पूजा समिति के मुख्य अतिथि के रूप में सनातन धर्म की महानता, गहराई और इसके अलौकिक ज्ञान पर लोगों को जागरूक करने का अवसर दिया गया, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मैं रवि तिवारी (Ravi Tiwary), भारतीय जनता पार्टी का एक कार्यकर्ता हूँ, मैंने उस अद्भुत और शानदार कार्यक्रम के बीच अपने आप को पाकर काफी गौरवान्वित अनुभव किया। मुझे उस कार्यक्रम में अपने विचार रखने का अवसर देने के लिए सभी वरिष्ठजनों का धन्यवाद। पश्चिम विहार नवरात्रि पूजा समिति के समस्त कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी इतने शानदार कार्यक्रम को भव्य तरीके से आयोजित करने के लिए बधाई के पात्र हैं।

मैंने अपने सम्बोधन की शुरुआत लोगों को जागरूक करने से की कि आज के भोगवादी युग में प्रत्येक इंसान सिर्फ अधिक से अधिक वस्तुओं का भोग करना चाहता है। वह दिन ब दिन अपने आप से दूर होता जा रहा है, न सिर्फ अपने आप से बल्कि अपने धर्म से भी लगातार कटता चला जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप वर्तमान में संसार की यह दुःखद हालत किसी से भी छिपी नहीं है। जिस तरफ आप मुंह उठाकर देखेंगे तो पायँगे कि इंसान अपने स्वार्थ, लालच, भय एवं अपनी कभी भी न समाप्त होने वाली इच्छाओं के चंगुल में फंसता ही चला जा रहा है और भोगवादी प्रवृत्ति का शिकार होकर वह न सिर्फ स्वयं का नुकसान कर रहा है अपितु वह स्वयं से अधिक इस संसार को विनाश के कगार पर पहुँचा चुका है।

इन भयावह परिस्थितियों में समाज में चारों ओर फैले अंधकार में रोशनी की एकमात्र किरण जो हमे प्रतीत होती है वह है प्रत्येक मनुष्य का सनातन धर्म के मूल्यों की ओर पुनः वापस लौटना और अपने जीवन को उस प्रकार ढालना जैसा कि हमें हमारे वेदों और उपनिषद् के ऋषियों ने बताया है। ऐसा करके ही हम न सिर्फ अपना बल्कि समस्त संसार को भोगवादी प्रवृत्ति से जन्मे विनाश से बचाकर एक स्थिरता की ओर ला पायंगे। मैंने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालते हुए अपने सनातन धर्म की महानता एवं भव्यता को प्रस्तुत करने की कोशिश की जो कि इस प्रकार हैं- 

1. सनातन धर्म क्या है?

अगर आप एक सनातनी हैं और आपको सनातन धर्म के विषय में अक्सर यह प्रश्न सुनने को मिलता है कि सनातन धर्म क्या है? इसको शुरू करने वाले कौन थे? आदि अनेक प्रश्नो से हमारे महान धर्म को निशाना बनाने का कुत्सित प्रयास लगातार होता रहा है और वर्तमान समय में भी यह लगातार किया जा रहा है बिना यह जाने कि सनातन धर्म के केंद्र में क्या है? और इसकी शिक्षाएँ कैसी है?

इन प्रश्नों के जवाब में सर्वप्रथम मैंने यह कहा कि सनातन धर्म कोई एक व्यापारिक संगठन या व्यवसाय से लाभ कमाने वाली संस्था नहीं है जिसको कोई शुरू करने वाला होगा। संसार में धर्म एकमात्र है और वह है सनातन बाकी सभी सारे कोई पंथ हैं कोई मजहब हैं परन्तु धर्म कहलाने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ सनातन को है। धर्म का अर्थ होता है जो भी धारण करने योग्य हो उसको धर्म कहते हैं और सनातन का अर्थ है जो सदा से विद्यमान हो, जिसे कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता हो, जिसका जन्म और मृत्यु से कोई सम्बन्ध न हो। सनातन धर्म का अर्थ यह है कि जो सदा से चला आ रहा है उसी ओर बढ़ो और उसे धारण करो। क्योंकि धर्म के केंद्र में होती है करुणा न सिर्फ अपने लिए अपितु समस्त संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए अगर आपके हृदय में करुणा नहीं है तो न ही आप धार्मिक हैं और इंसान तो आप कतई हैं ही नहीं।

2. आज के वर्तमान हालात में सनातन धर्म का महत्व 

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा कि कई बार हमको इस तरह के प्रश्नों से भी दो चार होना पड़ता है कि आज के विज्ञान के दौर में सनातन धर्म और इसके धार्मिक ग्रंथो का क्या महत्व है? इस प्रश्न के प्रतिउत्तर में मैंने बताया कि विज्ञान एक अलग चीज है और धर्म एक अलग वस्तु है और सनातन धर्म कभी भी विज्ञान विरोधी नहीं रहा है जैसा कि हमने वेदों में पाया है कि दो तरह की विद्याएँ होती हैं- १. विद्या २. अविद्या। विद्या का अर्थ होता है स्वयं को जानना, जिसे हम अध्यात्म भी कहते हैं।

अविद्या का अर्थ होता है अपने आलावा बाकी समस्त संसार को जानने का प्रयास करने को “अविद्या” कहते है। हमारे वेदों में दोनों तरह के ज्ञान को बराबर सम्मान दिया गया है। किसी का यह आक्षेप लगाना कि सनातन धर्म विज्ञान विरोधी है यह सिर्फ उस व्यक्ति की अज्ञानता और मूर्खता है। जैसे जैसे भोगवादी प्रवृत्ति बढ़ती जाती है, सनातन धर्म और इसके मूल्यों का उतना ही महत्व बढ़ता जायेगा क्योंकि विज्ञान बहुत ही ईमानदार चीज होती है।

विज्ञान साफ शब्दों में यह कहता है कि मनुष्य के मन में क्या चल रहा है इससे हमें कोई सरोकार नहीं है और न ही हम पता लगा सकते हैं लेकिन इंसान का सारा दुःख मन में ही होता है और दुखों का इलाज भी उसके मन में होता है परन्तु विज्ञान ने तो यहाँ पर हाथ खड़े कर दिए हैं, तो यहाँ पर काम शुरू होता है हमारे महान उपनिषदों का जो सीधा इंसान के मन पर प्रहार करते हैं, फिर दुःख की घडी में हमे सहारा देने के लिए कृष्ण आते हैं गीता लेकर और अर्जुन की मानसिक दुर्बलता को दूर करने का एक सफल प्रयास करते है। जो लोग यह कहते हैं कि आज के समय में इन धार्मिक ग्रंथो की कोई आवश्यकता नहीं है वो शायद यह नहीं जानते कि हमारा मन जैसा आज से १०,००० साल पहले था ठीक वैसा ही आज भी है।

यह अवश्य हो सकता है कि हमारे शारीरिक बनावट में कोई परिवर्तन आया हो। तो सनातन धर्म के उपनिषद्, वेद और गीता सीधा हमारे मन पर चोट करती है और हमारी मानसिक दुर्बलताओं को दूर करके हमारी सारी कमजोरियों और दुखों को नष्ट कर देती है। बहुत ही अभागे हैं वह जो अपने जीवनकाल में एक बार भी गीता को नहीं पढ़ते हैं, क्योंकि चेतना के दृष्टिकोण से देखा जाए तो हम जन्म से एक जानवर होते हैं, इंसान हमको बनना पड़ता है। 

3. प्रकृति को साथ लेकर चलने वाला धर्म 

सनातन धर्म की सुंदरता के विषय में मैंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि हमारे चारों ओर फैली प्रकृति हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण कारक सिद्ध होती है इसके बारे में तो हम सभी जानते हैं, क्योंकि सनातन धर्म में तो प्रकृति को ईश्वर तक पहुँचाने का द्वार कहा गया है। आज के वर्त्तमान समय में हम जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से दो-चार हैं, कारण सिर्फ एक है हमारा सनातन मूल्यों के विपरीत जीवन जीना। पीपल के वृक्ष की पूजा हम सनातनी करते हैं क्योंकि मात्रा यही एक पेड़ है जो दिन और रात दोनों ही परिस्थितियों के ऑक्सीजन छोड़ता है। जो हमें जीवन देता है वही तो हमारा भगवान हुआ इसीलिए सनातन धर्म में कहा गया कि कण-कण में भगवान है।

आज हम यह भी देख सकते है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है लोगों में मांसाहार की प्रवृत्ति का बढ़ना। क्योंकि बकरे का मांस हम खाते है बिना यह जाने वह मांस बना कैसे? बकरे के शरीर में 1 किलो मांस तब बनता है जब वह 20 किलो अनाज खाता है। बकरे को 20 किलो अनाज खिलाने के लिए खेती भी करनी पड़ती है इसके लिए जंगल काट कर खेत बनाए जा रहे हैं। जंगल कटने से जबरदस्त तरीके से जलवायु परिवर्तन हो रहा है।

आज के समय में 70 प्रतिशत खेती सिर्फ इसीलिए की जा रही है कि उससे पैदा होने वाले अनाज को जानवरों को खिलाया जा सके। फिर उस जानवर को हम खा सकें। यह हमारी अज्ञानता है कि हमको लगता है इसका कोई बुरा प्रभाव हम पर नहीं पड़ेगा। हमारे सनातन धर्म के ऋषियों ने कुछ सोच-विचार करके ही सादा, सात्विक और शुद्ध शाकाहार भोजन की सलाह दी थी। परन्तु भोगवादी प्रवृत्ति और अज्ञानता के महासागर में आज हमने समूची पृथ्वी को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है और जो एकमात्र चीज है जो इस समय पृथ्वी को बचा सकती है वह सनातन धर्म के मूल्यों और शिक्षाओं के अनुरूप अपना जीवन जीना। वरना आने वाली पीढ़ियाँ हमें कतई क्षमा नहीं करेंगी।

आज के समय में सबसे ज्यादा प्रहार चाहे वह सामाजिक तौर पर हो चाहे वह राजनितिक तौर पर हो, सनातन धर्म पर ही किया जा रहा है। लेकिन अज्ञानियों और मूर्खों को यह नहीं मालूम कि वह सनातन धर्म का दुष्प्रचार नहीं कर रहे अपितु अपने ही सर्वनाश की कहानी लिख रहे हैं। यह स्मरण रखा जाना चाहिए कि यह पृथ्वी को अगर किसी हाल में बचाना है तो उसका एकमात्र समाधान न सिर्फ भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व का सनातन धर्म को ओर लौटना है। 

नवरात्रि के शुभ अवसर पर मैंने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के माध्यम से अपने महान सनातन धर्म के वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताया है। आशा करता हूँ कि इस जानकारी से वहाँ कार्यक्रम में उपस्थित सभी दिव्यजनों एवं इस समय जो भी इस लेख को पढ़ रहे हैं उन सभी पाठकों को अपने धर्म के बारे में कुछ सकारात्मक दृष्टिकोण मिलेगा। मुझे कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए एवं अपने विचार साझा करने का अवसर देने के लिए मैं पुनः पश्चिम विहार नवरात्रि पूजा समिति का विशेष तौर पर आभारी रहूँगा। 

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