सनातन धर्म पर अमर्यादित टिप्पणी करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या को रवि तिवारी (Ravi Tiwary) का तर्कपूर्ण जवाब

स्वामी प्रसाद मौर्या ने अपनी नीच और निकृष्ट मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए हमारी आराध्य देवी लक्ष्मी जी पर विवादित बयान दिया है। पता नहीं बीजेपी छोड़ने के पश्चात् उनकी मानसिकता में ऐसा परिवर्तन कैसे आया? क्या वह सत्ता और वोट की खातिर इतना गिर जायेंगे कि धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओ पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करके उनका मजाक बनाएँगे।

बिना सनातन दर्शन को पढ़े इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान की जितनी आलोचना की जाये कम है। लक्ष्मी जी के चार हाथ, कमल पर विराजमान और धन के देवी का प्रतीक होने पर उनकी जो भी राय है वह मूर्खता की पराकाष्ठा को दर्शाता है। रवि तिवारी (Ravi Tiwary) जी के मार्गदर्शन में लक्ष्मी अवतार को समझने का प्रयास करते हैं:

लक्ष्मी जी को धन की देवी क्यों कहा जाता है?

सर्वप्रथम इस सन्दर्भ में रवि तिवारी (Ravi Tiwary) जी समझाते हुए कहते हैं कि लक्ष्मी जी को धन की देवी क्यों कहा जाता है? इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें यह समझना होगा कि धन का क्या अर्थ होता है?

वेदों में आत्मज्ञान को ही सबसे बड़ा धन कहा गया है। लक्ष्मी जी को धन की देवी कहने का वेदान्तिक अर्थ है कि आत्मज्ञान जैसे खजाने को पा लेने वाला इंसान ही धनी कहलाता है। जिस इंसान ने अपने मूल रूप यानि आत्म रुप को समझ लिया।

लक्ष्मी जी की कृपा का अर्थ इस रूप में लिया जाना चाहिए। आत्मज्ञान जैसे खजाने को पा लेने वाला इंसान ही धनी होता है वही लक्ष्मी जी की कृपा पाने लायक होता है। लक्ष्मी जी की कृपा होने का यह अर्थ कतई नहीं है कि आपके पास रुपये, पैसे, धन-दौलत की कमी नहीं होगी। लक्ष्मी जी की कृपा चेतना या मानसिक तल पर होने के रूप में लिया जाना चाहिए न कि भौतिक या सांसारिक तल पर।

सिर्फ एक मुँह और चार हाथ?

इस हास्यास्पद प्रश्न के जवाब में रवि तिवारी (Ravi Tiwary) जी ने गुत्थी सुलझाते हुए कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने लक्ष्मी जी पर अपने विवादित बोल जारी रखते हुए उनके चार हाथ और सिर्फ एक मुँह होने पर सवालिया निशान लगाया है।

उनके इस दुस्साहस भरे हास्य पर सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि वो कुछ दिन समय निकाल कर पहले तो सनातन दर्शन को एक गुरु के सानिध्य में रहकर उचित प्रकार से पढ़े। आगे मैं कहना चाहता हूँ कि एक मुँह और चार हाथ होने का प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति को प्रयोग में लाते हुए सदैव निःस्वार्थ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें।

मानव चेतना को उसके उच्चतम तल पर पहुँचाने से बढ़कर कोई लक्ष्य नहीं हो सकता है। इसके लिए अदम्य मेहनत और दिनरात की क्रियाशीलता की आवश्यकता होती है, उस प्रयास को दर्शाने के लिए चार हाथ हैं। सिर्फ एक मुँह होने का अर्थ यह है कि आपका लक्ष्य भटकाव से भरा नहीं होना चाहिए बल्कि एक ही लक्ष्य आपके मन में सदैव होना चाहिए और वह है आत्मज्ञानी होना।

कमल पर विराजमान होने का अर्थ?

रवि तिवारी (Ravi Tiwary) जी ने बहुत ही प्रेमपूर्वक तरीके से जवाब देते हुए कहा कि लक्ष्मी जी का आसन कमल क्यों है? हमारे सनातन धर्म के ज्यादातर देवी-देवताओं को कमल पर ही आसीन क्यों दिखाया गया है? यह कोई गूढ़ रहस्य नहीं है। इसका सीधा सम्बन्ध मानसिक या चेतना के तल से ही है।

कमल होता है कीचड़ में, और कीचड़ में रहकर ही वह संसार के सबसे मूल्यवान पुष्पों में उसकी गिनती होती है। जैसे हम इंसान बिना ज्ञान के जैसे होते हैं एक पशु के समान। हमारी चेतना और मानसिक अवस्था जैसी होती है वह भी एक पशु के सामान ही होती है।

हम हमेशा अपनी आदतों के चंगुल में फंसे रहते हैं। हमारी चेतना अपने गर्त में रहती है और हम हमेशा जीवन भर दुःखी ही रहते हैं। परन्तु ज्ञान होने से हमें हमारी वर्तमान मानसिक परिस्थिति को समझने का अवसर मिलता है और अपनी चेतना के स्तर को ऊँचा प्रयास करते हैं। इसीलिए कमल पर विराजमान सारे देवी-देवताओ के हाथ में आप पुस्तक पाएँगे।

उल्लू क्यों है लक्ष्मी जी की सवारी?

लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू ही क्यों है? इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि उल्लू रात्रि के घनघोर अँधेरे में भी बिलकुल साफ देख सकता है। इस प्रतीक से यह अर्थ निकाला जा सकता है कि आपके जीवन में चाहे जितना ही अंधकार क्यों न हो ज्ञान के बल से मिले साहस से आप अंधकार के उस पार जा सकते हैं। आप कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उनका डटकर मुकाबला करने को प्रयासरत रहते हैं। यह सब प्रतीकों से हमें विपरीत और दुर्लभ परिस्थितियों में जीवन जीने का साहस और चुनौतियों से निपटने का साहस मिलता है।

अतएव रवि तिवारी (Ravi Tiwary) जी, स्वामी प्रसाद मौर्य जी से यह निवेदन करते हैं कि इस तरह की नीच हरकतें उनको शोभा नहीं देती हैं। बिना पढ़े बिना जाने किसी भी धार्मिक प्रतीक या अवतार पर इस तरह मजाक बनाने के उद्देश्य से प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा करना चाहिए। उन्हे एक वरिष्ठ और जिम्मेदार राजनेता होने का परिचय देते हुए इस तरह की ओछी हरकतों से बचना चाहिए और देश एवं प्रदेश में एक सकारात्मक राजनीति का उदाहरण पेश करना चाहिए।

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